मुंडाओं / 'हो' लोगो की शासन व्ववस्था
'हो' समाज भी मुंडाओं की ही एक तीसरी शाखा है। मुंडा भाषा हो भाषा मिलती है। परन्तु संस्कृति में भिन्नता है। जहाँ मुंडाओं की पढ़हा पंचायत बहुत कुछ उराँओं से मिलती जुलती है। हो लोगों की शासन व्यवस्था पारम्परिक रूप से आज भी बानी हुई है। इनकी इस व्यवस्था में निम्नांकित पदधारी स्वशासन का दायित्व निभाते है। -
1. मुंडा - ग्राम के प्रधान को मुंडा कहा जाता है। जबकि आज-कल मुंडा जाति के सभी लोग मुंडा कहलाते है। हो समाज में मुंडा का पद होता है जो गांवो के मुखिया के लिए प्रयुक्त होता है। इसका क्षेत्र प्रशासन न्याय तथा लगान लेने का है।
2 . डाकुआ - मुंडा पदधारी ग्राम प्रधान के सहयोग के लिए डाकुआ होता है। यह मुंडा के सामाजिक व प्रशासन सम्बन्धी सुचना हो लोगो तक पहुँचाता है। एक प्रकर से ये मुंडा लोगो का सन्देशवाहक होता है।
3 . मानकी - 15 से 20 गांव के ऊपर एक मानकी का पद होता है। 5 से 10 गांवो का एक पीड अर्थात ग्राम पंचायत पारम्परिक रूप से माना जाता है। मानकी की बैठक में सभी मुंडा तथा डाकुआ बैठते है। और मानकी मामलो का अंतिम फैसला देता है। इसे सभी मान लेते है.
4 . तहसीलदार - लगान वसूल करने क लिए मानकी का सहयोगी तहसीलदार होता है। गांवो के मामले मुंडा पदधारी ही सुलझाते है। यदि मुंडा पदधारी से निपटारा नहीं हो सका तो मामला मानकी के पास जाता है। मानकी मामलो का अंतिम निणर्य लेता है।
5 . मानकियों की समिति- यदि मामला पेंचीदा हो जाता है। तब ऐसी स्तिथि में 3 मानकियों की एक समिति गठित किया जाता है। ये तीनो विचार-विमर्श बाद अंतिम फैसला देते है।
6 . दिउरी - यह गांव पुजारी होता है। जिसे दिउरी कहते है। पूजा पाठ, शादी-विवाह , पर्व-त्योहार में इसकी भूमिका प्रमुख रहती है।
7 . यात्रा दिउरी - यह दिउरी सहयोगी होता है। गांव के देवी-देवताओ पूजा करने कराने में यह दिउरी का साथ निभाता है।
हो समाज में भी सरकारी पंचायत और पारम्परिक पंचायत दोनों साथ-साथ चल रहे है।
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