झारखण्ड के स्वतंत्रता सेनानी एवं झारखण्ड के विभूति

                       

तिलका मांझी 

  • तिलका मांझी का जन्म एक संथाल परिवार में 11 फरवरी 1750 ई. को सुल्तानगंज ठाणे के तिलकपुर गांव में हुआ था। 
  • 1771 ई. 1784 ई. तक ये अंग्रेजो के शासन के विरुद्ध संघर्षरत रहे। 
  • उन्होंने कर वसूली के विरोध में विद्रोह का नेतृत्व किया। 
  • विरोध के दौरान ब्रिटिश दमन का कड़ा विरोध करते हुए 13 जनवरी 1784 लो तीर चलाकर क्लीवलैंड की हत्या कर दी। 
  • संसाधनों की कमी के कारण इन्हे अंग्रेजी सेना द्धारा पकड़ लिया गया और भागलपुर में एक बरगद के पेड़ में 1785 में उन्हें फाँसी दे दी गयी। 
  • अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह करने वाले ये पहले आदिवासी थे , इसलिए इन्हे आदि विद्रोही कहा जाता है। 

रघुनाथ महतो 

  • इनका जन्म वर्तमान सरायकेला-खरसावां जिले नीलडीह प्रखंड में घुटियाडीह गांव में हुवा था। 
  • इन्होने चुवार विद्रोह का सर्वप्रथम नेतृत्व किया। 
  • जमीन और घर की बेदखली के कारण वे विद्रोही बन गए। 
  • इन्होने 1769 ई. में अपना गांव अपना राज , दूर भगाओ विदेशी राज का सर्वप्रथम नारा दिया। 
  • इन्होने अंग्रेजो के विरुद्ध छापामार पद्धति से अभियान चलाया। 
  • 1778 ई. में लोटा गांव के समीप एक सभा के दौरान अंग्रेज सैनिको के गोलीबारी में मरे गए। 

रानी सर्वेश्वरी 
  • संथाल परगना जिला के महेशपुर राज की रानी सर्वेश्वरी ने पहाड़िया सरदारों के सहयोग से कम्पनी शासन के विरुद्ध 1781-82 ई. में विद्रोह किया। 
  • यह विद्रोह उनकी जमीन को दामिन-ए-कोह बनाये जाने के विरुद्ध में था , और सरकारी संपत्ति घोषित कर दिया गया। 
  • इन्होने अपनी जिंदगी के आखरी दिन भागलपुर जेल में बिताया और वही पर 6 मई 1807 ई. को इनकी मृत्यु हो गयी। 

तेलंगा खड़िया 

  • तेलंगा-खड़िया का जन्म 1806 ई. में मुरगु में हुआ था , मुरगु नागफेनी के समीप कोयल नदी के समीप बसा हुआ है। 
  • 1850-60 ई. के आसपास तेलंगा खड़िया के नेतृत्व में जमींदारों ,महाजनो तथा अंग्रेजी राज्य के खिलाफ जुझारू आंदलोन हुआ। 
  • यह आंदोलन मूलतः जमीन वापसी और जमीन पर झारखंडी समुदाय के परम्परागत हक़ की बहाली के लिए था। 
  • 23 अप्रैल , 1880 को जब तेलंगा अपने साथियो के साथ एक बैठक में व्यस्त थे , उसी वक्त अंग्रेजो के दलाल बोधन सिंह ने उन्हें पीछे से गोली मर दी। 

भगीरथ मांझी 
  • भगीरथ  मांझी एक महान जनजातिय नेता थे। 
  • ये खरवार जाति  से थे। 
  • इनका जन्म गोड्डा जिले के तलडीह नामक गांव में हुआ था , 
  • 1874 ई. के खरवार आंदोलन का उन्होंने नेतृत्व किया। 
  • इन्होने खुद को राजा घोषित किया और जनता से अपील किया की वे अंग्रेजो व महाजनो को लगान न देकर इन्हे दे। 
  • 1879 में इनकी मृत्यु हो गयी इन्हे लोग श्रद्धावंश  बाबा कहते थे। 

बुद्धू भगत
  • बुद्धू भगत का जन्म एक उरांव परिवार में 17 फ़रवरी 1792 को रांची जिले के चान्हो प्रखंड के अंतर्गत सीलागाई ग्राम में हुआ था। 
  • उन्होंने ब्रिटिश शासन , तथा उनके समर्थको के विरुद्ध कॉल विद्रोह 1831-32 में उनका नेतृत्व  किया। 
  • इस दौरान उन्हें असीम वीरता  धैर्य एवं साहस का परिचय दिया। 
  • उन्होंने पिठौरिया , बुंडू , तमाड़ , आदि स्थानों पर अंग्रेजो के खिलाफ घमासान लड़ाईया लड़ी। 
  • कप;कप्तान इम्पे के नेतृत्व में आये सैनिको के खिलाफ लड़ते हुए वे 14 फ़रवरी 1832  को मातृभूमि की बलिवेदी पर सहीद हो गए। 
  • बुद्धू भगत झारखण्ड के प्रथम आंदोलनकारी थे, जिनके सिर के अंग्रेज सरकार ने 1000 रुपये के पुरस्कार की रखी। 

 बिरसा मुंडा 
  • बिरसा मुंडा का जन्म एक मुंडा परिवार में नवम्बर15 नैव,नवम्बर , 1875  को वर्तमान खूंटी जिलान्तर्गत तमाड़ थाना  उलिहातू गांव में हुआ था। 
  • इन्होने उलगुलान (महान हलचल ) विद्रोह का नेतृत्व किया। 
  • इन्होने अपने अनुयाइयों को अनेक देवताओ के स्थान पर देवता सिंगबोंगा की आराधना का उपदेश दिया। 
  • 1895 में इन्होने अपने को सिंगबोंगा का दूत घोषित  कर एक नए पंथ बिरसाइल की स्थापना की। 
  • यह धार्मिक आंदोलन आगे चलकर मुंडा जनजाति के राजनितिक आंदोलन के रूप में परिवर्तित हो गया। 
  • 1899 में इन्होने ईसाई मिशनरियो तथा अंग्रेजो  विरुद्ध खूंटी , तोरपा तमाड़, कर्रा, आदि क्षेत्रों  विद्रोह भड़काया। 
  • 3 फ़रवरी , 1900  को रांची जेल में हैजे के कारण इनकी मृत्यु हो गयी। 
  • बिरसा मुंडा आज भगवान् के रूप में पूजे जाते है 

सिद्धो-कान्हू
  • इन दोनों भाइयो का जन्म एक संथाल परिवार में संथाल परगना के अंतर्गत भगनाडीह नामक ग्राम में हुआ। 
  • इनके पिता का नाम चुन्नी मांझी था। 
  • उन्होंने 1855 ई. में ब्रिटिश सत्ता साहूकारों , व्यापारियों , व जमींदारों के खिलाफ प्रसिद्ध संथाल विद्रोह का नेतृत्व किया था। 
  • अंततः सिद्धो-कान्हू अंग्रेजी प्रशासन द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए और उन्हें बड़गैत  में फांसी दे दी गयी। 
  • सिद्धो का जन्म 1815 में और कान्हू का जन्म 1820 में हुआ था। 

जतरा भगत 
  • टाना भगत आंदोलन के प्रणेता जतरा भगत का जन्म 2 अक्टूबर 1888 ई. में गुमला जिला के अंतर्गत बिशुनपुर प्रखंड के चिंगरी नामक गांव में एक साधारण परिवार में हुआ था। 
  • 1914 में इन्होने टाना भगत आंदोलन चलाया जो एक प्रकार का सासंकृतिक आंदोलन था। 
  • जतरा भगत ने उराव लोगो के बीच मदिरा पान न करने , मांस न खाने , जीव हत्या न करने, यज्ञोपवीत धारण करने , अपने अपने आँगन में तुलसी चौरा स्थापित करने , भूत- प्रेत का अस्तित्व न मानने ,गौ सेवा करने , सभी से प्रेम करने, बैठ बेगारी समाप्त करने ,तथा अंग्रेजो की बात न मानने , खेतों में गुरुवार को हल चलाना बंद करने का उपदेश दिया। 
  • 1916 ई. में जतरा भगत को गिरफ्तार कर रांची जेल में भेज दिया गया। 1917 ई. में जेल से रिहा होने के बाद दो माह के भीतर ही इनकी मृत्यु हो गयी। 

पाण्डेय गणपत राय 
  • पाण्डेय गणपत राय का जन्म 17 फ़रवरी 1809 को लोहरदगा जिले के भंडरा प्रखंड के अंतर्गत भौरों ग्राम में  हुआ था। 
  • ये छोटानागपुर महाराज के दीवान थे। 
  • इन्होने 1857 जे विद्रोह में ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के साथ भाग लिया। 
  • इस दौरान विद्रोहियों ने शाहदेव को राजा तथा गणपत राय को सेनापति घोषित कर दिया। 
  • इन्होने बरवा थाना को जलने में अग्रणी भूमिका निभाई थी। 
  • जब वे लोहरदगा पर आक्रमण करने ही वाले थे की उन्हें बंदी बना लिया गया। 
  • 18 अप्रैल , 1858 को इन्हे जिला स्कूल (रांची ) के मुख्य गेट के सामने एक कदम पेड़ से लटकाकर फांसी दे  दिया गया 
टिकैत उमराव सिंह 
  • टिकैत उमराव सिंह का जन्म ओरमांझी प्रखंड के खटंगा ग्राम में हुआ था। 
  • वे दो भाई थे - टिकैत उमराव सिंह और टिकैत घासी सिंह। 
  • ये बांधगांव राजपरिवार के थे। 
  • इन्होने अपने भाई और प्रमुख क्रांतिकारी नेता शेख भिखारी के साथ मिलकर 1857 के विद्रोह में अंग्रेजो के समक्ष कड़ी चुनौती प्रस्तुत की। 
  • इन तीनो ने मिलकर चुटूपालू तथा चारु घाटी में अंग्रेजो सेना को प्रवेश करने से रोक दिया था। 
  • बाद में इन्हे शेख भिखारी के साथ गिरफ्तार कर 8 जनवरी 1858 को फांसी दे दी गयी। 
शेख भिखारी 
  • भारतीय इतिहास के पन्नो पर अमर शहीद शेख भिखारी का नाम अंकित है। 
  • इनका जन्म 1819 ई. में रांची जिला के ओरमांझी थाना के अंतर्गत खुदिया ग्राम में हुआ था। 
  • शेख भिखारी राजा टिकैत उमराव सिंह के दीवान थे। 
  • उन्होंने टिकैत उमराव सिंह के साथ मिलकर 1857 के महासंग्राम में अग्रणी भूमिका निभायी। 
  • ब्रिटिश प्रशासन ने उन्हें 6 जनवरी , 1858 ई. को गिरफ्तार कर लिया और 8 जनवरी1858 ई. को फांसी दे दिया गया। 
ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव

  • इनका जन्म 12 अगस्त , 1817 को बड़कागढ़ की राजधानी सतरंजी में हुआ था। 
  • उनके पिता का नाम रघुनाथ शाहदेव तथा माता का नाम वाणेश्वरी कुवंर था। 
  • उन्होंने 1857 के विद्रोह के दौरान विद्रोही सैनिको का भरपूर साथ दिया। 
  • अपने साथी विश्वनाथ शाहदेव के विश्वासघात के कारण वे 30 मार्च , 1858 को अंग्रेजो ने उन्हें पकड़ लिया। 
  • 16 अप्रैल , 1858 को जिला स्कूल ( रांची ) के सामने पेड़ में लटकाकर फांसी दे दिया गया। 
नीलाम्बर-पीतांबर

  • नीलाम्बर-पीताम्बर पलामू के दो महान स्वतंत्रता सेनानी थे।  उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह किया। 
  • नीलाम्बर-पीताम्बर गुरिल्ला युद्ध में बहुत निपुण थे। 
  • उन्होंने 1857 के विद्रोह  चेरो राजाओं के साथ मिलकर भाग लिया। नीलाम्बर-पीताम्बर की गिरफ़्तारी डालटन ने किया। 
  • उन्हें 28 मार्च 1859 में लेस्कीगंज के एक आम के पेड़ में फांसी दे दी गयी। 
  • स्वतंत्रता आंदोलन में नीलाम्बर का पुत्र कुमार साही शिवचरण मांझी तथा रत्न मांझी को भी फांसी की सजा दी गयी 

राजा अर्जुन सिंह 

  • 1857 के विद्रोह के समय ये पोढ़हाट के राजा थे , जिन्होंने चाईबासा के विद्रोही सैनिको को अपने यहाँ ठहराया था। 
  • कैप्टन आर. सी. ने उन्हें आत्म समर्पण करने को कहा और ऐसा नहीं करने पर फांसी पर लटकने की धमकी दी। 
  • अर्जुन सिंह ने 17 सितम्बर , 1857 को अपने आप को सिंहभूम का राजा घोषित कर दिया। इस पर आर. सी. ने अर्जुन सिंह की गिरफ़्तारी के लिए 1000 रूपये ईनाम और उसके राज्य को जब्त करने  घोषणा की। 
  • राज्य हड़प के भय से अर्जुन सिंह ने रांची कमिश्नर डाल्टन  समक्ष आत्म-समर्पण  करना स्वीकार किया। 
  • रांची आने पर उनके साथ आये विद्रोही सैनिको को आनन-फानन में कोर्ट मार्सल कर फांसी पर लटका दिया गया। 
  • इससे क्रूर होकर अर्जुन सिंह ने पुनः अंग्रेज विरोधी अभियान छेड़ दिया।  उसका यह अभियान नवम्बर 1857 से फ़रवरी 1859 तक चला। 
  • 1859 में रांची के कमिश्नर डाल्टन के समक्ष आत्म-समर्पण करने के बाद उन्हें बंदी बनाकर वाराणसी भेज दिया गया।  जहाँ पर उन्होंने अंतिम साँस ली। 

जयमंगल पाण्डेय 

  • 1857  के विद्रोह के समय हज़ारीबाग में विद्रोह को दबाने के लिए रांची के कमिश्नर डाल्टन ने ग्राहम के नेतृत्व में एक सैन्य टुकड़ी हज़ारीबाग भेजा। 
  • रामगढ पहुंचने पर इस टुकड़ी के जमादार माधव सिंह , सूबेदार नादिर अली ने विद्रोह किया। 
  • 2 अक्टूबर को चतरा की लड़ाई में सूबेदार नादिर अली घायल हो गए। 
  • 3 अक्टूबर को को सूबेदार जयमंगल पाण्डेय पकडे गये जिन्हे 4 अक्टूबर 1857 को फांसी दे दिया गया 


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