असुर / गोड़ाईत

असुर :-

  • यह झारखण्ड की प्राचिनतम जनजाति है, जिसका उल्लेख ऋग्वेद, आरण्यक , उपनिषद , महाभारत आदि ग्रंथो में मिलता है। 
  • ऋग्वेद में असुरो को अनासहः (चिपटी नाक  वाले ) अव्रत (भिन्न आचरण वाले ), मृदाहः वाचः (अस्पस्ट बोलने वाले ) कहा जाता है। 
  • असुर जनजाति प्रोटो-आस्ट्रोलॉइड प्रजाति से सम्बंधित है। 
  • इस जनजाति के मुख्य निवास स्थान गुमला, लोहरदगा, तथा लातेहार, जिला है नेतरहाट के पाट छेत्रो में इस जनजाति का मुख्य रूप से संकेन्द्रण है। 
  • इस जनजाति की बोली आसुरी है , आस्ट्रो-एशियाटिक भाषा का समूह है। 
  • आदिकाल में असुर  लौह कर्मी रहे है, इनका परम्परागत पेशा लौह अयस्को को गलाकर लोहा प्राप्त करना था, अब वे स्थायी गांवो में रहकर स्थायी कृषि किया करते हैं। 
  • ये तीन उपजातियो में विभाजित है ,-वीर ,बिरजिया तथा आगरिया ।
  • असुर समाज पितृसतात्मक एवं पितृवंशीय होता है। 
  • असुर गोत्र को पारस कहा जाता है। 
  • इसके अविवाहित वास स्थान को गीतिओड़ा के नाम से जाना जाता हैं। 
  • सिंगबोंगा इनका मुख्य देवता है। 
  • सोहराई , सरहुल , फगुवा , कथडेली , सरहिकुटसी ,नवाखानी आदि इनका मुख्य पर्व हैं। 
  गोड़ाईत :-

  • यह झारखण्ड की अल्पसंख्यक जनजाति है। 
  • प्रजाती के अनुसार गोड़ाईत  को प्रोटो-आस्ट्रोलॉइड समूह में रखा जाता है। 
  • इनका मुख्य निवास स्थान रांची,हज़ारीबाग, धनबाद, लोहरदगा, संथाल परगना , पलामू, तथा सिंहभूम क्षेत्र हैं। 
  • इनकी अपनी कोई भाषा नहीं है , किन्तु ये सदानी बोलते है। 
  • गोड़ाइत परिवार पितृसतात्मक एवं पितृवंशीय होता है। 
  • गोड़ाइत लोग देवी माई तथा पुरविया की पूजा करते है। 
  • इनके पुजारी को बैगा कहा जाता है। 
  • करमा , सरहुल, सोहराई, नवाखानी , जीतिया ,फागु, आदि इनके मुख्य त्योहार हैं। 
  • इनका मुख्य पेशा कृषि है। 

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