आदिवासियों के सामाजिक -राजनितिक संगठन

                          आदिवासियों के सामाजिक -राजनितिक संगठन 

  • मांझी - संथाल , माल पहड़िया और सौरिया पहड़िया के गांवो के मुखिया को मांझी कहा जाता है। 
  • पंचायत - जनजाति समाज में आपसी कलह और विवादों को पंचायत के माध्यम से सुलझाया जाता है। 
  • पोण - जनजातियों में पुत्र वधु को दी जाने वाले नगद राशि को पोण कहा जाता है। 
  • पड़हा - पांच से तीस ग्रामो को मिलाकर एक पड़हा बनाया जाता है।  इसके प्रमुख को पड़हा राजा कहते है। 
  • पाहन - मुंडा , उरांव , और कुछ अन्य जनजातियों के जो पुजारी होते हैं , उन्हें पाहन के नाम से जाना जाता है।  कुछ जगहों पर पाहन को बैगा भी कहा जाता है। 
  • सरदार - पहाड़िया जनजाति में कई गांवो के समूह के मुखिया को सरदार घोषित  किया जाता है। 
  • बैगा - रांची , पलामू , और , लातेहार जिलों में पुजारियों को बैगा कहा जाता है।  विशेषकर उरांव,असुर , बिरजिया , चेरो , खरवार , और पहाड़िया जनजातियों में पुजारियों को बैगा कहते हैं। 
  • धुमकुड़िया (युवागृह )- यह उरांव जनजाति के अविवाहितों का एक संगठन है।  जिसकी दो शाखाएं होती हैं - जोंख-एरपा एवं पेल-एरपा  पहला लड़को तथा दूसरा लड़कियों के लिए होता है। 
  • देहरी - माल पहाड़िया के पुजारियों को देहरी के नाम से पुकारा जाता है। 
  • गीतिओड़ा - यह मुंडा जनजाति के अविवाहितों की संस्था है।  यह उरांव के धुमकुड़िया से काफी मिलता जुलता है। 
  • लाया - भूमिज जनजाति के पुजारी को लाया कहा जाता है। 
  • माटी - चेरों , खरवार ,  उरांव , असुर , और गोडाइट के बीच जादू-टोना करने वाले व्यक्ति को माटी के नाम से जाना जाता है। 

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