-: उरांव :-
- उरांव जनजाति झारखण्ड की दूसरी प्रमुख जनजाति है।
- उरांव परंपरा से मिले संकेतो से पता चला है की इनका मूल निवास स्थान दक्कन रहा होगा जिसे कुछ ने कोंकण बताया है।
- उरांव भाषा एवं प्रजाति दोनों से द्रविड़ जाति के है।
- दक्षिणी छोटानागपुर और पलामू प्रमंडल उरांवो का गढ़ है. इन दोनों प्रमंडलो में ही लगभग 90 प्रतिशत उरांव निवास करते है. जबकि शेष 10 प्रतिशत उतरी छोटानागपुर, संथाल परगना एवं कोल्हान प्रमंडल में निवास करते है।
- यह जनजाति करीब 14 गोत्रो में विभाजित हैं। ये है लकड़ा, रुंडा, गारी, तिर्की, किस्पोट्टा, टोप्पो, एक्का, लिंडा, मिंज, कुजूर, बांडी, बेक, खलखो, और केरकेट्टा।
- उरांव जनजाति के लोग कुड़ुख भाषा बोलते हैं , जो द्रविड़ भाषा परिवार की है।
- इस जनजाति के लोग अपने आप को कुड़ुख कहते है , जिसका मतलब मनुष्य होता है।
- सरना इनका पूजा स्थान होता है।
- उरांव के कबीले में ग्राम पंचायत का बहुत अधिक महत्व हैं , जिसका निर्णय को गांव के सभी लोग मानते हैं।
- इस जनजाति में पंचायत को पांचोरा कहा जाता है।
- पहान इनका धार्मिक पुजारी होता है ,और महतो गांव का मुखिया जो गांव का सामाजिक-प्रशासनिक प्रबंधन करता है। इसलिए उरांव गांव में एक कहावत प्रचलित है - "पहान गांव बनाता है , महतो गांव चलाता है"।
- उरांव परिवार पितृसत्तात्मक एवं पितृवंशीय होता है। पिता ही घर का मालिक होता है।
- गोत्र को ये लोग किलि कहते है।
- युवक और युवती के लिए अलग-अलग धुमकुडिओ का प्रबंध किया जाता है। युवको के धूमकुड़िआ को जोंख-एड़पा और युवतियों के धुमकुड़िया को पेल-एड़पा कहा जाता है।
- जोंख का अर्थ कुंवारा होता है। जोंख एड़पा को धांगर घर भी कहा जाता है।
- जोंख एड़पा के मुखिया को धांगर कहा जाता है तथा पेल एड़पा के देखभाल करने वाली महिला को बड़की धांगरिन कहा जाता है।
- धुमकुड़िया में प्रवेश लेने के लिए 10 -11 वर्ष का होना जरुरी है तथा विवाह से पहले तक इसका सदस्य रह सकते है।
- उरांव एक विवाही होते है पर कुछ स्तिथि में वे दूसरी पत्नी रखने की मान्यता है।
- उरांवो में समगोत्रीय विवाह वर्जित है। इनमे विवाह मुख्यतः बहिर्गोत्रीय के आधार पर होता है
- विवाह में लड़का पक्ष के सामने रखा जाता है। लड़का पक्ष को वधु-मूल्य देना पड़ता है।
- इनके सबसे बड़ा देयता धर्मेश है। जिसका तुलना सूर्य से किया जाता है।
- इनके अन्य देवता ठाकुर देव् (ग्राम देवता), मरांग बुरु (पहाड़ देवता ), आदि है। उरांओ के पूर्वजो की आत्मा सासन में निवास करती है। इसका महत्व भी उनके बिच पूजा स्थल के समान है।
- करमा एवं सरहुल इस जनजाति के महत्वपूर्ण त्योहार है।
- उरांव लोग हर वर्ष वैशाख में विसु सेंदरा फाल्गुन में फाल्गुन सेंदरा और वर्षा ऋतू के आरम्भ में 'जेठ शिकार 'खेला जाता है।
- पुरुषो द्वारा पहना जाने वाला वस्त्र करया तथा महिलाओ द्वारा पहना जाने वाला वस्त्र खंरिया कहा जाता है।
- इस जनजाति के लोग नाच के मैदान को अखड़ा कहते है।
- इनका प्रमुख भोजन चावल , जंगली पक्षी , फल आदि है।
- हड़िया इनका प्रिय पेय पदार्थ हैं।
- ये लोग बन्दर का मांस नहीं खाते है। यह पुरे उरांव समाज के लिए निषेध हैं।
- उरांव में गोदना की प्रथा प्रचलित है। गोदना को उरांव महिलाये बहुत महत्व देती है।
- उरांवो में शव का प्रायः दाह संस्कार किया जाता है।
- उरांवो का मुख्य पेशा कृषि है।
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