मुण्डा
मुण्डा-
- मुण्डा झारखण्ड की तीसरी बडी जनजाति है।
- जाति की द्रष्टि से मुण्डा को प्रोटो आस्ट्रोलोइड समूह में रखा जाता है।
- राँची जिला इस जनजाति का मुख्य निवास स्थान है।
- रांची के अतिरिक्त गुमला, सिमडेगा, पक्षिमी सिमभूम एवं सरायकेला-खरसावां जिले में भी इनकी अच्छी-खासी संख्या है।
- मुंडा जनजाति कोल के भी नाम से जाने जाते है।
- तमाड़ क्षेत्र में रहने वाले मुंडाओं को तमड़िया मुंडा या पातर मुंडा के नाम से जाना जाता है।
- ये अपने आप को होडोको कहते है।
- ये अपने गोत्र को किलि कहते है।
- मुंडा लोग मुंडारी भाषा बोलते है। यह भाषा आस्ट्रो-एशीयाटिक भाषा परिवार के अंतर्गत आती है।
- इस जनजाति में पुरूषो द्वारा पहना जाने वाला कपड़ा बटोई या करया कहा जाता , जबकि महिलाओ द्वारा पहना जाने वाला कपड़ा परेया कहलाता है।
- मुंडा अपने भाषा को होकोडो जागर कहते है।
- इनके युवा गृह को गीतिओडा कहा जाता है।
- गीतिओडा एक गुरुकुल की तरह होता है। जो मुंडा जनजातियों के युवक-युवतिओं को प्रशिक्षित करता है।
- मुंडा जनजाति में एकल एवं सयुंक्त दोनों तरह के परिवार पाए जाते है। अधिकांशः एकल परिवार ही पाया जाता है।
- इसमें वंशकुल की परम्परा काफी महत्वपूर्ण है। जिसे ये खूंट कहते है।
- मुंडा परिवार पितृसतात्ममक एवं पितृवंशीय दोनों होता हैं। पिता ही परिवार का मालिक होता है। संतानो में भी पिता का गोत्र चलता है
- रिजले नामक व्यक्ति ने मुंडा जनजाति के 340 गोत्र का जिक्र किया है। कुछ लोगो में मुंडा जाति के 13 उप शाखाओँ की चर्चा की है, लेकिन मुख्य रूप से दो शाखाओ को ही माना जाता है - 1 महली एवं मुंडा , 2. कपाट मुंडा।
- मुंडा लोगो में सम गोत्री विवाह वर्जित है।
- इनका मुख्य देयता सिंगबोंगा है।
- इनके प्रमुख देवी-देवता 'हातु-बोंगा (ग्राम देवता ), 'देशाउली' (ग्राम की सबसे बड़ी देवी ), 'बुरु बोंगा' (पहाड़ देवता), इकिरबोंगा (जल देवता), ओड़ा बोंगा (कुल देवता ) आदि है।
- प्रत्येक मुंडा गांव में दो तरह के मुखिया होते है। एक धार्मिक मुखिया जिसे पहान कहा जाता है। दूसरा प्रशासकीय मुखिया जिसे मुंडा कहा जाता है।
- पहान का सहायक पुजार या पनभरा कहलाता है।
- इस जनजाति में डेहरी ग्रामीण पुजारी होते है।
- मुंडाओं में प्रसिद्ध लोक-कथा सोसो बोंगा इसकी परम्पराओ एवं विकास की अवस्थाओं पर प्रकाश डालती है।
- इस जनजाति के मुख्य पर्व सरहुल (बा-परब ) करमा, सोहराई, बुरु-पर्व, माघे पर्व, फागु पर्व, बतौली , दसई , सोसोबोंगा , जतरा आदि है।
- मुंडा गांव में तीन प्रमुख स्थल होते है, सरना , अखड़ा , और सासन।
- इनकी जनजाति में पूजा स्थल को सरना एवं पंचायत स्थल को अखड़ा कहते है।
- अखड़ा गांव के बिच का खुला स्थान होता है। जहाँ पंचायत की बैठक होती है और रात्रि में युवक-युवती एकत्र होकर नाचते गाते है।
- मुंडा लोह कब्रस्थान को सासन कहते हैं।
- समाधि-स्थल में मृतकों की पुण्य-स्मृति में पत्थर के शिलाखंड रखे जाते है। जिसे सासन दिरी कहा जाता है। इसे हड़गड़ी भी कहा जाता है।
- मुंडा समाज में गांव के लड़ाई झगड़ा का निपटारा ग्राम-पंचयत करता है , इसका प्रधान मुंडा होता है वह गांव का मालिक होता है। जिसे हेतु मुंडा कहा जाता है।
- मुंडा समाज में शव को गाड़ने-जलाने दोनो की प्रथाएं है पर दफ़नाने की प्रथाएं अधिक प्रचलित है।
- इनका मुख्य पेशा कृषि है।
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