हो

    हो :-

  • जनसंख्या की दृस्टि से यह झारखण्ड की चौथी प्रमुख जनजाति है।  
  • ये जनजाति प्रमुख रूप से कोल्हान प्रमंडल में पायी जाती है। 
  • इनके 80 से भी अधिक गोत्र हैं। जिसमे से - अंगारिया, बारला, बोदरा, बालमुचु, हेम्ब्रोम, चाम्पिया, हेमासुरिन, तमसोय, आदि प्रमुख हैं। 
  • जाति के अनुसार इसे प्रोटो-आस्ट्रोलॉइड की श्रेणी में रखा जाता है। 
  • सिंगबोंगा इसकी प्रमुख देवता हैं। 
  • हो जनजाति के अन्य प्रमुख देवता पाहुई बोंगा ,(ग्राम-देवता ), ओटी बोड़ोम (पृथ्वी ), मरंग बुरु।  नागे बोंगा  आदि है। 
  • इसमें देशाउली को वर्षा का देवता माना जाता है। 
  • हो समाज में धार्मिक अनुष्ठान का कार्य देओरी द्वारा सम्पन्न कराया जाता है। 
  • हो गांव काप्रधान मुंडा होता है और उसका सहायक डाकुआ कहलाता है। 
  • माघे , बाहा , डमुरी , होरो , जॉनका , कोलोभ , बतौली , आदि इनके प्रमुख पर्व है।  इनके प्रायः सभी पर्व कृषि व कृषि कार्य से सम्बंधित है। 
  • इनकी भाषा हो है जो मुंडारी परिवार की है। 
  • हो लोगो ने कुछ पहले अपनी एक लिपि बार चिति बनाई थी। 
  • हो लोग अखड़ा को स्टे: तुरतु कहते है। 
  • हो परिवार पितृसत्तात्मक एवं पितृवंशीय होता है 
  • हो जनजाति में मुख्य रूप से पांच प्रकार के विवाह प्रचलित है -आंदि बापला, दिकू आंदि , राजी ख़ुशी , ओपोरतिपि,एवं अनादर। 
  • हो जनजाति में समगोत्री पूर्णतः वर्जित है। 
  • इसमें घर जमाई का प्रचलन नहीं है। 
  • इस जनजाति में बहुविवाह का भी प्रचलन हैं। 
  • इसमें शव को जलने एवं गाड़ने दोनों प्रकार की प्रथाये है।
  • मध् पान प्रिय शौक  है।
  • कृषि इनकी पेशा है।      

No comments:

झारखण्ड की संस्कृति

झारखण्ड की सांस्कृतिक स्थिति  जनजातीय जीवन की आधारशिला उनकी परम्पराए हैं। क्योंकि समाज संस्कृति का नियमन भी वही से होता है तथा अनुशासन औ...

Powered by Blogger.