झारखण्ड के आदिवासी
झारखण्ड के आदिवासी
आदिवासी /जनजातीय जनसंख्या यहाँ के मूल निवासी और उसी अर्थ में 'आदिवासी ' कहे जाते हैं। किन्तु इनका जातिगत इतिहास परंपरा और परंपरागत कथा कहानियाँ के अर्थ तथा गीतों में छिपे भाव पता चलता हैं। की ये लोग कही बाहर से आकर धरती पर बसे हैं। झारखण्ड छेत्र पूर्व पाषाण काल से बसा हुआ था। इसका प्रमाण खुदाई में मिले उपकरणों व हथियारों तथा सिक्को से प्रमाणित होता है। की कोई अत्यंत सभ्य जनजाति यहाँ कोलेरियन जनजातियों के आने के पहले निवास करती थी।
कोलेरियन जनजाति के इस पठारी भूखंड में प्रवेश के पहले जो प्रजाति यहाँ रहती थी उनके बारे में कुछ अधिक कहना मुश्किल है किन्तु यह कहा जा सकता है। की वे लोग लोहा गलकर काम करना जानते थे। तथा अन्य धातुओ जैसे तांबा , पीतल का भी प्रयोग करते थे। उनकी कला विकसित थी तथा एक निश्चित अर्थववस्था थी। वे किसी स्थायी गांव में रहते थे। जो किसी नदी के किनारे बसा हुआ होता था। वर्तमान में लोहरदगा जिला में पाट छेत्रो में रहने वाले असुरों को उन्ही लोगों की संख्या में गिना जाता है। इन्ही असुरो को हराकर या उन्हें जीतकर मुंडाओं ने अपना अधिपत्य इस पठारी भूखंड पर सबसे पहले जमाया था।
वर्तमान में जितनी भी जनजातियां झारखण्ड छेत्र में है। उनमे असुर और मुंडा निश्चित तौर में आरंभिक वासिंदे हैं। ऐसा उल्लेख है। की भारत में आर्यो का आगमन हुआ। उस कल में जिन जातियों का यहाँ अधिपतिय था वे वर्तमान मुंडा जनजाति के संभवतः पूर्वज थे। आर्यो द्वारा परास्त होकर मुंडाओं ने गंगा का अनुसरण करते हुए पूर्व की ओर आगे बढ़ना जारी रखा। आर्यो का विस्तार होता गया और मुंडाओं के सुरक्षात्मक परिवृति अपने आप को सिकुड़ती गयी। यह लम्बे समय तक चलता रहा। आर्यो और गैर आर्यो के बीच युद्ध की परंपरा ऋग्वेद कल से महाभारत कल तक लगभग 4000 वर्षो तक चलती रही।
कुछ मुख्य बिन्दु -
- भारतीय राष्ट्रीयता की आत्मा जिन विभिन्न जिन सामाजिक तत्वों पर आधारित है , उनमे से सबसे प्रमुख तत्वों के अतिरिक्त झारखण्ड का एक महत्वपूर्ण तत्व है- जनजातीय सभ्यता एवं संस्कृति
- पाषाण काल से ही झारखण्ड , जनजातियों का प्रमुख अधिवास स्थल रहा है।
- झारखण्ड आदिवासियों की संस्कृति का परिणाम है।
- झारखण्ड के जनजाति को आदिवासी, आदिम जाति , वनवासी , गिरिजन, सहित अन्य कई नामों से पुकारा जाता है। किन्तु आदिवासी शब्द जिसका शाब्दिक अर्थ आदिकाल से रहने वाले लोग होता है
- झारखण्ड में 32 प्रकार की जनजातियां पायी जाती हैं , जो संविधान के अनुच्छेद -342 के अंतर्गत राष्ट्पति द्वारा अधिसूचित हैं।
- झारखण्ड में 24 जनजातियाँ प्रमुख जनजातियों की श्रेणी में आती है , जबकि अन्य 8 (बीरहोर, कोरवा, असुर , पहरिया , विरजिया, सौरिया पहारिया , माल पहारिया ,सबर )को आदिम जनजातियों के श्रेणी में रखा जाता हैं।
- आदिम जनजातियां , अनुसूचित जनजातियों में आने वाले वैसे जनजाति हैं। जिनकी अर्थवस्था कृषि पूर्वकालीन रही है यानी जो अपना जीवन यापन इन दिनों भी आखेट तथा कंदमूल संग्रह करने के साथ साथ स्थान्तरित खेती करती है
- यहाँ की कुल जनजातीय आबादी का 92.86 प्रतिशत आबादी ग्रामीण छेत्रो में और 7.14 प्रतिशत आबादी सहरो में निवास करती है।
- प्रजातीय तत्व के आधार पर झारखण्ड की सभी जनजातियों को प्रोटो-आस्ट्रोलॉइड वर्ग में रखा जाता हैं।
- आधिकांश जनजातीय भाषा आस्ट्रिक समूह की है। सिर्फ उरावों द्वारा 'कुड़ुख ' भाषा और माल पहाड़िया एवं सौरिया पहारिया की मालतो भाषा द्रविड़ समूह की मानी जाती है।
- झारखण्ड की प्रत्येक जनजाति के अपने अपने धार्मिक कर्मकांड सामाजिक आचार विचार , विधि-विधान , परिवार -गोत्र , जन्म-मृत्यु संस्कार आदि होते हैं जो अन्य जनजातियों से अलग पहचान तय करते हैं।
- जनजातीय गांवो अलग संस्थाए होती हैं। जो इसकी संस्कृति को विलकचंता प्रदान करती है गांव के बिच में अखड़ा (नाच का मैदान )होता है। गांव में सरना पूजा स्थल होता है।
- जनजातिय गाओं में अन्य मुख्य विशेस्ता युवा गृह होता है जिसे उरांव लोग धुमकुड़िया कहते हैं। और मुंडा, असुर एवं कोरा जनजाति गीतिऔडा के नाम से जाना जाता है
- जनजातियों के गोत्र को किलि , पारी, कुंदा, आदि कई नामो से जानते हैं।
- जनजातिये परिवार बहुत काम पाये जाते है।सयुंक्त परिवार बहुत काम पाए जाते हैं।
- झारखण्ड का जनजातिय समाज पितृसत्तात्मक है।
- उतराधिकार पुरुष पंक्ति में चलता है। पिता की सम्पति में पुत्रो को सामान अधिकार मिलता है उसमे लड़कियों का हक़ नहीं होता है।
- जनजातिये समाज में महिला पुरुष का सम्मानजनक स्थान है। इसका समाज लिंग -भेद की इजाजत नहीं देता है।
- इनमे बाल विवाह का परम्परा नहीं है दहेज़ प्रथा है। बल्कि वधु -मूल्य की प्रथा है।
- विवाह के पहले सगाई का रस्म केवल बनजारा जनजाति के लोग करते है। तथा दहेज़ लेते है। और वधु-मूल्य देते है।
- वैवाहिक रस्म में सिंदूर लगाने की प्रथा प्रायः सभी जनजातियों में है। केवल खोंड जनजाति में जयमाला का रिवाज है।
- जनजातियों में विवाह का रस्म पुजारी, यथा - पाहन , नाये , आदि द्वारा से संपन्न कराया जाता है कुछ जनजातियों में विवाहब्राह्मण द्वारा किया जाया है।
- कृषि जंजीतियो का मुख्य जीविकोपार्जन का आधार है किन्तु जीविकोपार्जन के अन्य साधन जैसे - वनोत्पाद संग्रह , शिकार करना , शिल्पकारी , पशुपालन , और मजदूरी को भी अपनाया जाता है।
- जनजातियों का प्राचीन धर्म सरना धर्म है। इसमें प्रकृति पूजा प्रमुख है।
- इसके अधिकांश पर्व प्रकृति से जुड़े होते है। सरहुल, करमा, सोहराई यहाँ के प्रमुख त्योहार है।
- अधिकांश जनजातियों के प्रमुख देवता सूर्य हैं जिसे संथाल, मुंडा, असुर , भूमिज आदि सिंगबोंगा ,हो , सिंगी, माल पहड़िया, बेरु, महली सुरजी देवी , सबर उडिंग सुंग तथा खोंड बेलापूण नाम से पुकारते है।
- उरांव अपने सर्वोच्च देवता धर्मेश, सौरिया पहड़िया बेड़ो गोसाईं , गोंड बूढ़ा देव , बनजारा बनजारा देवी , गोडाइत पुरबिया , बिरहोर वीर , बथुड़ी पोलाठाकुर , लोहरा विश्वकर्मा तथा पहरिया धरती कहते है।
- जनजातियों का अपना धार्मिक पुजारी होता है , जैसे - पाहन (मुंडा,उरांव ,आदि में ) बैगा ( खरवार , खड़िया , असुर , बिंझिया , किसान ,आदि ) देउरी (पहरिया , सबर , बथुरी , आदि ) नायके ( संथाल ) नाये (बिरहोर ) गोसाई (चेरो ) देवोनवा (हो ) आदि।
- सरहुल , जादुर , करम , जतरा , झूमर बरोया , माठा , डोमकच , सोहराई , अंगनाई चाली , यहाँ के प्रमुख राग/गीत-नृत्य हैं। नृत्य में परम्परागत परिधान , फूल-पतों , पंखो , आभूषणो से श्रृंगार करने और सजने संवरने की परम्परा है।
- जनजातीय परिवार प्रायः माँसाहारी होते है। केवल टाना भगत और साफाहोड़ समूह मांस मदिरा से परहेज करते है।
- जनजातियों में शराब पीना सार्वलौकिक प्रथा है। चावल से बनी शराब
(हड़िया ) इनका प्रिय पेय है। - जनजातियों में मृत्यु के बाद शव को दफ़नाने और जलाने की दोनों की प्रथाएं है। दाह-संस्कार काम होता है।
- जनसंख्या की हिसाब से झारखण्ड की प्रमुख जनजातियों में पहले स्थान पर संथाल , दूसरे स्थान पर उरांव , तीसरे स्थान पर मुंडा तथा चौथे स्थान पर हो है।
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