सदनो की सामाजिक एवं सांस्कृतिक रूपरेखा

                                सदनो की सामाजिक एवं सांस्कृतिक रूपरेखा 

सदान और आदिवासी दोनो झारखण्ड के मूल निवासी है और उनकी संस्कृति साझा एवं एक दूसरे से मिलजुल कर रहने की संस्कृति है।
   धर्म - सदनो में सरक नामक एक छोटे से जगहों में अवस्थित जाति जैन धर्म से प्राभवित है।  वे सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करते है। तथा मांस मछली का सेवन नहीं करते है।  ये लोग सूर्य एवं मनसा के उपासक है।  16वीं सदी के बाद से इस्लाम धर्मावलंबी भी यहाँ बस गये जो कालान्तर में सदान कहे गये हिन्दुओ में देवी देवताओ की पूजा अर्चना करते है।
   शारीरिक गठन - सदानो में शारीरिक गठन आर्य , द्रविड , जैसे कमोवेश लक्षण दिखाई देते है। फिर भी ये आदिवासिओ से बिलकुल भिन्न दिखाई पड़ते थे। सदानो में गोरे ,काले ,तथा सावले तीनों प्रकार के रंग दिखाई पड़ते है। सदानो में भी  ऊँचे , लम्बे तथा नाटे तीनो प्रकार के लोग दिखाई पड़ते है।
   वेशभुषा - सदान में धोती ,कुरता,गमछा, आदि प्रचलित है।किन्तु वर्तमान में उपयुक्त वस्त्रो के अतिरिक्त पैैंट, शर्ट,कोट , टाई ,पायजामा , सलवार , कुर्ता , साड़ी , आदि प्रायः सभी तरह के बिहार और बंगाल के प्रचलित वस्त्र धारण करते दिखाई पड़ते है।  

   आभूषण - बंगाल, बिहार में प्रचलित आभूषण सदानो के बहुत प्रचलित है।  जो आभूषणो का प्रयोग आदिवासी करते है वो भी सदानो में देखा जाता है।  पोला , साखा , कंगन , बिछिया , हार , पयरी , हसली , कंगना , सिकरी , नथिया , तरकी , खोंगसो , आदि आभूषण महिलाओं में प्रचलित है।  सदानों में आदिवासियों की तरह गोदना का भी प्रचलन है।  

  गृहस्थी का सामान -   आजकल स्टील , प्लास्टिक , एवं अल्मुनियम के सामान प्रायः गांव  से शहर तक सभी सदानो  घरों में दिखाई पड़ते है।  लेकिन गाँवो में अभी भी 60 % सदान आदिवासी मिट्टी के बर्तनो का प्रयोग करते हैं।  घरों में हड़िया , गगरी , चूका , ढकनी अवश्य दिखाई देते हैं सदानो में पीतल और कांसा के बर्तन रखना समृद्धि का घोतक माना जाता हैं।  सामूहिक भोज में दोना पत्तल का प्रयोग किया जाता है। 
                                                                  खेतीबारी के मामलो के सदानो और आदिवासीओ का औजार   एक ही प्रकार का होता था।
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    रिश्ता-नाता - सदान समाज पितृसत्तात्मक होता था। अतः पिता के बड़े भाई को बडा या   बडा-बाप कहते हैं माता की बहन मौसी हैं। पिता का छोटा भाई काका या काकू कहलाते , पिता का दादा , पिता की माँ दादी। , मातृ कुल में माँ का भाई मां , माँ के पिता नाना कहे जाते थे। 
मातृ-पितृ के कुल में वैवाहिक संबन्ध वर्जित हैं मजाक वाले रिश्ते बड़े भाई की पत्नी भौजी , या बहन की पति जीजा जी , बहन के तरफ से बहन की ननद  साथ-साथ नाना-नानी , दादा-दादी भी मजाक वाले संबंध   हैं।                                           
    पर्व त्योहार - पर्व त्योहार सदानो की पहचान का बहुत बड़ा आधार है।  सदानो के त्यौहार वही मनाया जाता है जो आदिवासियों के लिए हैं।  होली , दीपावली , दशहरा , काली पूजा , के अतिरिक्त जितिया , सोहराई, करमा , सरहुल तीज आदि सदानों के प्रमुख त्योहार है।               
      नाच-गान - सदानों के गांवो की पहचान अखरा से होता है। अखरा आदिवासियों के तरह ही सदानों के गावों में अखड़ा होता है। करमा , सरहुल में सभी सदानों एवं आदिवासी लड़किया सामूहिक नृत्य करती है।  जावा जागने के लिए रात भर नृत्य होता है। इसके अलावे डमकच झुमटा , झूमर आदि नृत्य सामूहिक नृत्य हैं।  और छऊ , नटुवा, नचनी,घटवारी , आदि विविध प्रकार के नृत्य है।
 सदनों के गीत बहुत प्रकार के हैं । जिनके राग भी उन्ही के नाम अथवा सुर के नाम पर नामित हैं। गीतों के निम्न प्रकार है। दम्कच, झूमटा, अंगनई, झुमर ,सोहर, विवाह- गीत, फगुवा, सोहराय आदि।
अर्थात सदान, आदिवासियो के समकालीन, कही उनसे भी प्राचीन समुदाय है। जो झारखण्ड का मूल निवासी है।इन समुदायों भाईचारा बहुत अधिक है। अंग्रेजो ने आदिवासियो और सदानों की आपसी मित्रता को देखकर इनपर अनेक तरह की दरार उत्पन्न करने की चेसटा की थी।पर अंग्रेज असफल रहें। इस तरह आदिवासी समुदाय के लोगो को भी अपने इतिहास को समझने की जरुरत है। 

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